Thursday, March 25, 2010

बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है

चाहे हम सहमत हों अथवा नहीं लेकिन " The legend of Bhagat Singh " फिल्म का यह कालजयी संवाद अपने आप में समस्त बदलावों के प्रारंभ की व्याख्या कर देता है
आज एक राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व पर जो संकट आन पड़ा है उसकी आहट न तो देश के नीति-नियंताओं को सुनाई पड़ रही है और ना ही हमारी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा उसके बारे में कोई अनुमान लगाने में समर्थ है
भारत की वर्तमान व्यवस्था में इन सकटों का सामना करने एवं विश्व - पटल पर राष्ट्र को गौरवशाली रूप में स्थापित करने के लिए आज जो स्वर चाहिए वो किसी बड़े धमाके के रूप में ही होना चाहिए
संयमित और मीठी - मीठी चापलूसी भरी बातें करके ' महात्मा ' बना जा सकता है किन्तु विजेता बनने और जन - गण - मन के गौरव और स्वाभिमान की स्थापना करने के लिए हमें अपनी स्वर लहरियों को तलवार की ही धार देनी होगी
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस राष्ट्र के लिए यह बीड़ा कौन उठाएगा ? लेकिन यहाँ जवाब किसी और से नहीं बल्कि स्वयं से पूछना है
जवाब भी बड़ा ही सीधा सा है , देशहित में जो भी बात हमें उचित जान पड़ती है उसको डंके की चोट पर एक बड़े धमाके साथ सबके सामने लाइए
जो बात सत्यता की पुष्टि करती हो और देशहित में प्रधान हो हमें उसके लिए चाहे कितनी भी बड़ी छद्म नैतिकता को भूलना पड़े , स्वीकार्य है.