कुतुब मीनार की आज पाँच मंज़िले है उन की ऊँचाई 72.5 मीटर है,और सीढ़ियां 379 है। कुतुब मीनार की सात मंज़िले थी। यानि उस की उँचाई पूरी 100 मीटर, मानव शरीर के अनुपान के अनुसार उसकी मंज़िलों का विभाजन किया गया था। मानव शरीर को सात चक्रों में विभाजित किया गया है। उसी अनुपात को यानि मानव ढांचे को सामने रख कर उस की सात मंज़िले बनवाई गई ...थी। पहले तीन चक्र अध्यात्मिक जगत के कम और संसारी जगत के अधिक होते है। इस लिए मानव उन्हीं में जीता है और लगभग उन्हीं में बार-बार मर जाता है। मूलाधार, स्वादिष्ठता, मणिपूर ये तीन चक्र. इसके बाद अनाहत, विशुद्ध दो अध्यात्म का रहस्यं और आंदन है। फिर आज्ञा चक्र और सहस्त्रसार अति है। इस लिए "सात के अंक " का यह रहस्य हिन्दूओ की बड़ी बेबुझी सी रहस्यमय गुत्थी है। "सात" रंग है। "सात" सुर है। प्रत्येक सुर एक-एक चक्र की धवनि को इंगित करता है। जैसे सा...मूलाधार, रे....स्वादिष्ठता, इसी तरह रंग भी, सा के लिए काला......रे के लिए कबूतरी......। हिन्दू शादी जैसे अनुष्ठा्न के समय वर- वधु के फेरे भी "सात" ही लगवाते है।
कुतुब मीनार एक अध्यात्मिक केंद्र था। जिसे बुद्धो ने विकसित किया था। इस का लोह स्तंभ गुप्त काल से भी प्राचीन है। यहाँ शिलालेख भी मिले है। शायद चंद्र गुप्त के काल से भी प्राचीन। आज भी वहाँ भग्नावशेष अवस्था में कला के बेजोड़ नमूनों के अवशेष देखे जा सकते है।.........