Aap उन 30 करोड़ लोगों में तो नहीं हैं जो सूरज उगते ही पानी के लिए जद्दोजहद शुरू कर देते हैं? यदि नहीं तो भी खुश न हों। आज नहीं संभले तो आप उन 90 करोड़ लोगों में शामिल होंगे जो अगले 15 सालों में पानी के लिए तरसेंगे। इसकी वजह है नगद खेती, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और लाइफस्टाइल में पानी का बेतहाशा खर्च होना।
पिछले कुछ सालों में भारत में पानी की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है। यानी 1952 के मुकाबले अब 33 फीसदी पानी खत्म हो चुका है, जबकि आबादी 36 करोड़ से बढ़कर 115 करोड़ हो गई है, यानी तीन गुना से भी ज्यादा। हालात यह हो गए हैं कि हम लगातार भूमिगत जल पर निर्भर होते जा रहे हैं। इसका नतीजा यह निकल रहा है कि भूजल स्तर हर साल एक फीट की रफ्तार से नीचे जा रहा है। इससे उत्तर भारत के ही 11 करोड़ से अधिक लोग भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं। यह आकलन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने किया है। जमीन का सीना चीरकर लगातार पानी खींचने का ही परिणाम है कि आज देश के 5723 में से 839 ब्लॉक डॉर्क जोन में आ चुकेहैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस स्थिति से देश का कोई भी हिस्सा नहीं बच पाया है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर जगह पानी को लेकर मारामारी है। देश के दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले 35 शहरों में किसी में भी औसतन एक घंटे से अधिक पानी की आपूर्ति नहीं की जाती है।
कई शहरों में टैंकर ही पानी की आपूर्ति का एकमात्र जरिया बन चुके हैं। पानी के लिए कतारों में लगना भी अब लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। गांवों में तो स्थिति और भी बदतर है। पहले जो पानी पांच मिनट की दूरी पर उपलब्ध था, आज उसके लिए आधा घंटे तक चलकर जाना पड़ता है। राजस्थान और गुजरात के गांवों में यह स्थिति आम है और दक्षिण के राज्य भी अपवाद नहीं हैं।
पीने का पानी एक फीसदी भी नहीं
जब हम दुनिया के नक्शे पर नजर दौड़ाते हैं तो हर जगह समुद्र ही नजर आता है। यह पानी जमीन से भी ज्यादा दिखता है। बचपन से ही हमें हमारे शिक्षक बताते आए हैं कि धरती के 70 फीसदी भाग में पानी है, लेकिन फिर भी आज दुनिया भीषण जल संकट से गुजर रही है।
आखिर ऐसा क्यों?
दरअसल धरती पर जो पानी है, उसका महज 0.007 फीसदी हिस्सा ही मानव के लिए उपयोगी है, यानी एक लाख लीटर पानी में महज 7 लीटर। शेष पानी या तो समुद्री जल है या ग्लेशियर के रूप में जमा है। अपने देश की स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि यहां दुनिया की आबादी के 16 फीसदी लोग रहते हैं, जबकि पानी केवल चार फीसदी ही उपलब्ध है।
पानी के अंधाधुंध दोहन से जमीन के नीचे के भंडार तो खाली हो ही रहे हैं, नदियां भी बारिश के कुछ माह बाद ही सूख जाती हैं। कई खत्म होने के कगार पर हैं। भारत की प्रमुख नदी गंगा भी धीरे-धीरे मरती जा रही है। एशिया की एक अन्य प्रमुख नदी सिंधु की एक प्रमुख धारा कराची के पास पूरी तरह से सूख चुकी है। उस पर अब पगडंडियां बन चुकी हैं।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की 2007 की रिपोर्ट नदियों के मरने की वजह जलवायु परिवर्तन और पानी के अत्यधिक दोहन को मानती है। बारिश का सालाना औसत 105 सेंटीमीटर है। इसके कम होने से नदियों के जल प्रवाह में 20 फीसदी तक की कमी आई है।
वहीं सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिए नदियों से पानी का दोहन भी चार गुना बढ़ा है। बीते 3 सालों में स्थिति और बिगड़ी है। कई विकासशील और गरीब देशों में लोग ‘घातक’ पानी पीने को मजबूर हैं। दुनिया में हर साल 35 लाख और भारत में एक लाख लोग पानी से जुड़ी बीमारियों की वजह से मरते हैं।
बहरहाल खतरे की घंटी बज चुकी है। भूजल भंडार सूख रहे हैं, नदियां खत्म हो रही हैं। इससे आने वाले समय में लोगों की पानी तक पहुंच साल दर साल और भी मुश्किल होती चली जाएगी।
१९५२- 36 करोड़ 9452 ली. प्रति व्यक्ति
२०१०- 115 करोड 3076 ली. प्रति व्यक्ति
फैक्ट फाइल
भारत के 5723 में से 839 ब्लॉक डार्क जोन में हैं यानी पानी लगभग खत्म हो चुका है। सबसे खराब स्थिति राजस्थान की है। वर्षा कम होने से नदियों के जल प्रवाह में 20 फीसदी तक कमी आई है। दुनिया में हर साल 8 करोड़ लोग जुड़ जाते हैं। इससे पानी की मांग में 64 हजार अरब लीटर की वृद्धि हो जाती है। दुनिया में 1.20 अरब लोगों को रोजाना पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वर्ष 1900 से अब तक दुनिया में आधे वेटलैंड खत्म हो गए हैं। भारत में गंदे पानी से हर साल एक लाख लोग मर जाते हैं।
भारत में जल संकट के कारण
पानी की बर्बादी - भारत में हर साल बारिश से जितना पानी मिलता है, उसका 18 फीसदी हिस्सा ही उपयोग में आ पाता है। शेष 82 फीसदी पानी नदियों के जरिए समुद्र में मिल जाता है। सप्लाई के दौरान भी काफी पानी बर्बाद होता है। दिल्ली में ही ४क्फीसदी पानी सप्लाई के समय व्यर्थ बह जाता है।
क्यों- संग्रहण क्षमता का हमारे यहां अभाव है। संग्रहण क्षमता इतनी कम है कि हम 30 दिन के बराबर हुई बारिश का पानी ही संग्रहित कर सकते हैं। रेनवाटर हार्वेस्टिंग के प्रति जागरूकता का अभाव इसकी प्रमुख वजह है। जल के कुप्रबंधन के कारण भी पानी का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है।
खेती पी गई पानी -देश में उपलब्ध कुल पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है। दरअसल हरित क्रांति के बाद भारत में फसलों की ऐसी किस्में ज्यादा बोई जाने लगीं, जिनमें पानी की अधिक जरूरत पड़ती। बारिश से पर्याप्त पानी नहीं मिलने की वजह से भूगर्भीय जल के भंडारों पर निर्भरता बढ़ती गई।
क्यों-खेती के लिए जमीन से अंधाधुंध पानी निकाला जा रहा है। नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों में 2002 से 2008 के दौरान 109 अरब क्यूबिक मीटर (एक क्यूबिक मीटर = एक हजार लीटर) पानी समाप्त हो चुका है। इससे करोड़ों लोगों के सामने जल संकट गहरा गया है।
तेज विकास-भारतीय अर्थव्यवस्था में उभार की वजह से देश में पानी की मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार इस समय उद्योगों में पानी की मांग 50 अरब क्यूबिक मीटर है। इस पानी की आपूर्ति भी भूगर्भीय जल संसाधनों से हो रही है।
क्यों-उद्योगों से बड़ी मात्रा में निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो की वजह से पानी के स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। ट्रीटमेंट के अभाव में अपशिष्ट जल का सही उपयोग भी नहीं हो पा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार इस पानी का केवल ३५ फीसदी भाग ही शोधित हो पाता है।
लाइफ स्टाइल-पिछले तीन दशक में भारत की शहरी आबादी दोगुनी हो गई है और अब कुल जनसंख्या का 30 फीसदी हिस्सा शहरों में रहता है। शहरों में रहने की वजह से लोगों की लाइफ स्टाइल बदली है। बदलती लाइफस्टाइल भी पानी की बर्बादी की वजह बनी है।
क्यों- शहरों में रहने की वजह से वॉशिंग मशीन और फ्लश टाइलेट जैसी शहरी आदतों की वजह से पानी की खपत में बढ़ोतरी हुई है। वहीं एक जोड़ी जींस तैयार करने में करीब 2500 लीटर पानी खर्च होता है। एक कप कॉफी तैयार करने में 144 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है।