दरअसल, ब्लैकबेरी, गूगल और स्काइप की मदद से सूचना, तस्वीर और डेटा को भेजने-पाने और बात करने की सहूलियतें ही सरकार की परेशानी का सबब हैं। सरकार के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जो ऐसे साइबर प्लेटफॉर्म से होकर गुजरने वाले डेटा की निगरानी कर सके या उसे ट्रेस कर सके।
क्या है ख़तरा: दुनिया का सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल दरअसल ऐसा साइबर मंच है जिसका आतंकवादी गतिविधियों में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। गूगल की ईमेल सेवा, गूगल अर्थ जैसे फीचर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
गूगल अर्थ: गूगल अर्थ पर देश की सबसे अहम इमारतों जैसे, संसद, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास, देश के न्यूक्लियर पावर प्लांट, नेवी, आर्मी और एयरफोर्स से जुड़े अहम ठिकानों को गूगल अर्थ के जरिए देखा जा सकता है। यह अप्लीकेशन बहुत सटीक है और इसके जरिए किसी भी जगह की डिटेल हासिल किया जा सकता है। मुंबई में हुए हमलों की तैयारी के दौरान पाकिस्तान से चले आतंकवादियों को कभी भारत आकर रेकी की जरुरत नहीं पड़ी। उनके पास ब्लैकबेरी फोन पर गूगल अर्थ की सुविधा मौजूद थी, जिसकी मदद से उन्हें सारे ठिकाने और रास्ते मालूम थे। और उनके सटीक हमलों से साफ है कि उनकी जानकारी पूरी तरह पुख्ता थी। गूगल अर्थ के बारे में तो 2005 में ही तत्कालीन राष्ट्रपति डा अब्दुल कलाम ने चेतावनी दी थी। लेकिन आज भी गूगल अर्थ पर भारत के एयरबेस, न्यूक्लियर पावर प्लांट और दूसरी महत्वपूर्ण इमारतें देखी जा सकती हैं। हालांकि इस बारे में गूगल अर्थ का दावा है कि नक्शे पर किसी भी वस्तु की तस्वीर 100 मीटर के दूर से ही देखी जा सकती है और ज्यादा नजदीक जाने पर यह चित्र ब्लर हो जाता है। अमेरिका और चीन ने गूगल अर्थ से ऐसा ही तालमेल किया है, जिसके अनुसार किसी भी संवेदनशील बिल्डिंग जैसे कि वाइट हाउस की तस्वीरें नजदीक से नहीं देखी जा सकतीं। लेकिन अपराधियों ने इसका तोड़ भी निकाल लिया है। hackzine.com एक ऐसी वेबसाइट है जो सुरक्षा कवच तोड़ने में मदद करती है। इस पर दिए गए निर्देशों के पालन कर कोई भी व्यक्ति इन कथित सुरक्षा की धज्जियां उड़ा सकता है।
ईमेल: ईमेल को लेकर भी गंभीर सुरक्षा चिंता है। अभी तक मौजूद तकनीक के जरिए आपके अकाउंट से भेजे या रिसीव किए गए ईमेल के बारे में जाना जा सकता है। लेकिन अगर कोई शख्स अपने ईमेल अकाउंट में जाकर सिर्फ मैटर सेव कर दे और उसे कहीं भेजे न तो भी अकाउंट का पासवर्ड जानने वाला कोई दूसरा शख्स कहीं और से अकाउंट खोलकर मैटर पढ़ या डाउनलोड कर सकता है। ऐसे में सूचना बिना किसी रिस्क के दूसरे शख्स तक पहुंच जाती है। साइबर जानकार अभी तक इसका तोड़ नहीं ढूंढ पाए हैं। जीमेल के जरिए ईमेल सेवा में भी अग्रणी हो चुके गूगल की ईमेल सेवा के साथ भी दिक्कत है। यह परेशानी ईमेल की सर्विस देने वाली अन्य वेबसाइटों के साथ भी है, जिसका तोड़ साइबर एक्सपर्ट नहीं ढूंढ पा रहे हैं।स्काइप
वीओआईपी (वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल) तकनीक के जरिए बिना किसी फोन की मदद से आप दूसरे शख्स के साथ बातचीत कर सकते हैं। आप उसे टेक्स्ट, ऑडियो मैसेज भेज सकते हैं। या फिर वेब कैम से वीओआईपी के जरिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की जा सकती है। दरअसल, इंटरनेट पर टेलीफोन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी स्काइप को लेकर भी भारत में सुरक्षा चिंता है। सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है कि जिसके जरिए स्काइप पर होने वाली बातचीत को रिकॉर्ड किया जा सके या उसके बारे में पता लगाया जा सके। यही वजह है कि सरकार के सामने स्काइप को लेकर भी सवाल है। 26 नवंबर, 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में स्काइप का इस्तेमाल किए जाने की बात सामने आई थी।
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भारत में मौजूद स्मार्ट और सहूलियतों से लैस मोबाइल फोन में से एक ब्लैकबेरी ने मोबाइल और कंप्यूटर के फर्क को तकरीबन मिटा दिया है। इन खूबियों के बावजूद ब्लैकबेरी से जुड़ी सुरक्षा चिंताएं भी काफी गंभीर हैं। ब्लैकबेरी के जरिए किए जाने वाले ईमेल की गूढ़ कोडिंग भारत की चिंता का सबब है। जानकारों के मुताबिक भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए ब्लैकबेरी के जरिए भेजे जाने वाले ईमेल को डिकोड करना बहुत मुश्किल है। ब्लैकबेरी ने अपना सर्वर कनाडा में लगाया हुआ है। भारत सरकार ने ब्लैकबेरी से अपना सर्वर भारत में लगाने या फिर कनाडा से अपना डेटा शेयर करने और मॉनीटरिंग की सुविधा देने को कहा है। इसी मुद्दे पर दोनों में सहमति नहीं बन पा रही है।
ब्लैकबेरी को इस्तेमाल करने वाला शख्स किसी भी व्यक्ति का नाम कोड वर्ड से सुरक्षित रख सकता है और वह उस शख्स से संपर्क करते समय कोड का ही इस्तेमाल करते हैं। इस कोड को तोड़ना बेहद मुश्किल है। सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसे पुख्ता सबूत हैं कि आतंकवादी, अपराधी और नक्सली इन सुविधाओं की मदद से अपने ऑपरेशन कामयाबी से चला रहे हैं।ब्लैकबेरी की समस्या यह है कि इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी इस बारे में पीछे हटने के तैयार नहीं हैं। वाटरलू और औंटेरियो जैसी कंपनियों ने साफ कहा है कि वे अपनी नीति में कोई परिवर्तन नहीं करेंगें और उनके डेटा केवल उपभोक्ता के ही पास सुरक्षित रहेंगे।